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हाथों की लकीरें

रजनी को लड़के वाले देखने आ रहे थे। घर में बहुत चहल-पहल थी। चार भाइयों की सबसे छोटी इकलौती बहन, कोई कमी न रह जाए, लड़के वालों की आवभगत में।


क्या भाई, क्या भाभी सभी एक पैर पर नाच रहे थे, सबको उम्मीद थी कि रजनी का रिश्ता आज पक्का ही हो जाएगा क्योंकि रजनी थी ही लाखों में एक!

तय समय पर लड़के वाले आए। माता-पिता और एक लड़का, उन्हें रजनी बहुत पसंद आई।
उन्होने रजनी की गोद भर दी और रिश्ता पक्का हो गया। अगले हफ्ते रजनी का परिवार भी लड़के को पक्का करने जाने वाले थे।

रजनी मन ही मन बहुत खुश थी। माता-पिता के साथ आए हुए लड़के को ही वह अपना पति समझ रही थी। जबकि वह लड़के का छोटा भाई था।
दो दिन बाद रजनी की भाभी ने मजाक में रजनी की तरफ इशारा करते हुए अपनी जेठानी से कहा, "जीजी! रंजन भी आ जाते तो हमारी रजनी भी उन्हें देख कर आँखें चार कर लेती, बताओ छोटे भाई को लेकर आ गए।"

जेठानी, "हाँ! उन्हें रंजन को लेकर आना चाहिए था।"
तब रजनी का भ्रम टूटा कि वह उसका देवर है, वह तो उसी को लेकर ख्वाब बुन रही थी।

दो महीने के अंदर ही रजनी की शादी का मुहूर्त निकला। तैयारियाँ जोरों से चलने लगी।

तय समय पर बारात आई। वरमाला के दौरान रजनी ने पहली बार अपने पति को देखा, वह अपने भाई जैसा ही था।

फेरे हुए, सभी रस्में हो गई, विदाई की तैयारियाँ चल रही थी। गर्मी का मौसम था पास ही बावड़ी थी, जहाँ आसपास के लोग नहाने जाते थे।

बारात में आए हुए लड़कों ने बावड़ी में नहाने की योजना बनाई। सभी तैरना जानते थे सो डर की कोई बात भी नहीं थी। रंजन का भाई और बाराती लड़के नहाने के लिए चल दिए।

रंजन ने पूछा, "कहाँ जा रहे हो??"

रंजन का भाई कबीर बोला, "पास में ही बावड़ी है अभी नहाकर आते हैं।"

रंजन: "गर्मी तो मुझे भी परेशान कर रही है, चलो मैं भी चलता हूँ।"

कबीर: "भैया आपको कौन जाने देगा!"
रंजन: "पापा से पूछूंगा तो नहीं जाने देंगे। जितनी देर में मैं उन्हें मनाऊंगा, इतनी देर में तो हम नहा-कर आ जाएंगे, चलो जल्दी, चलते हैं किसी को पता भी न चलेगा।"

कबीर बोला, "ठीक है।" 
8-10 लड़के और दूल्हा नहाने बावड़ी पर पहुँच गए। आधे घण्टे तक नहाना चलता रहा। किसी को किसी की फिक्र नही थी क्योंकि सब अच्छे तैराक थे।
नहा-धोकर सब वापस जाने लगे। कबीर को रंजन भैया कहीं दिखाई नही दिए। वह सोचने लगा भैया कहाँ नहा रहे हैं दिखाई नहीं दे रहे।

वह पुकारने लगा, "भैया! भैया! कहाँ हो?? जल्दी आ जाओ देर हो रही है।"

कोई आवाज नहीं आई!!

सब लड़के ढूँढने लगे, "रंजन भैया कहाँ हो??
आसपास खाक छान मारी, सब लड़के फिर से बावड़ी में उतरे लेकिन रंजन का कोई पता नहीं।

कबीर बोला, "भैया के बिना मैं तो घर नहीं जा सकता, वहीं जमीन पर फैल गया और जोर-जोर से रोने लगा।

एक लड़का बोला, "मैं जनवासे में देखकर आता हूँ, हमें परेशान करने के उद्देश्य से वे चुपचाप चले गए होंगे। ऐसा कहते हुए वह जनवासे की तरफ दौड़ गया। 

वहां पहुँचते ही रंजन के पिता की नजर उस पर पड़ी वे बोले, "रंजन कहाँ है विदा के लिए देर हो रही है??"

इतना सुनते ही लड़का समझ गया कि रंजन भैया यहाँ नहीं आए, वह वहीं जमीन पर बैठ गया और फूट-फूटकर रोने लगा। सब घबरा गए, "पूछने लगे क्या हुआ??"

लड़के ने रोते-रोते सारी घटना बयां कर दी। सब बावड़ी की तरफ दौड़ने लगे। कोहराम मच गया।
जैसा जिसने सुना बावड़ी की तरफ दौड़ा।

रजनी ने सुना, सुनते ही बेहोश हो गई, भाभियाँ उसे संभालने में लग गईं। 
गोताखोर बावड़ी में उतारे गए, सुबह से शाम हो गई रंजन का पता नहीं चला।

उसके पिता चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे कि रंजन डूब नहीं सकता, बह अच्छा तैराक था।

बावड़ी पर मेला सा लग गया। रात में हल्की तलाश जारी रही, प्रशासन तक खबर पहुँच गई।
सुबह होते ही अधिकारी बावड़ी पर जमा हो गए।

प्रशिक्षित गोताखोरों ने दोपहर तक बावड़ी छान मारी, रंजन का कोई पता नहीं चला। 

दोपहर में हैवी मोटर लगाकर बावड़ी का पानी खाली किया जाने लगा। शाम पाँच बजे तक काफी पानी बावड़ी से निकाल दिया गया। उसके नीचे खाली जगह दिखाई देने लगी। वहाँ उसकी फूली डैडबाॅडी दिखाई दी जो कि छज्जे के नीचे अटक गई थी, वहाँ पुरानी सांकल पड़ी थी जिसमें रंजन फंस गया था, ऊपर छज्जा इसलिए वह सांकल से छूट कर खुली जगह में नहीं आ पाया।

रजनी का रो-रोकर बुरा हाल था। उसकी तबियत बिगड़ गई। वह होश में आती और रो-रोकर बेहोश हो जाती।

डैडबॉडी मिलते ही अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी। सबकी आँखों से आँसू बह रहे थे। सबको रजनी से सहानुभूति थी, "बेचारी रजनी!!"

इसी तरह तीन दिन गुजर ग‌ए। तीसरे दिन का क्रियाकर्म करके सब जाने की तैयारी करने लगे।

रंजन के पिता ने सभी बड़े-बूढ़े, रजनी के पिता और भाई इकट्ठे किए और सबके समक्ष अपनी बात रखी, "मेरा बेटा इस दुनिया से चला गया मैं ये दुख कभी नहीं भूल सकता, लेकिन उस बच्ची का क्या कसूर है जिसकी शादी होते ही सब उजड़ गया। वह मेरी बहू नहीं बेटी है, उसके प्रति मेरा फर्ज बनता है कि मैं उसे बेसहारा न छोड़ूँ। मेरा बेटा कभी वापस नहीं आएगा लेकिन रजनी का दुख मेरा चैन छीन लेगा। मैं बहू लेने आया था, बहू लेकर जाना चाहता हूँ। अगर आप सब सहमत हों तो मेरे छोटे बेटे के साथ रजनी का विवाह सम्पन कीजिए, ताकि मैं अपनी बेटी को घर ले जा सकूँ।"

इतना सुनते ही सब आश्चर्य चकित हो गए। रजनी के भाई और पिता ने रंजन के पिता के पैर पकड़ लिए। 
'आप जैसी महान आत्मा इस धरती पर' 
हमें आपका ये महान और ऐतिहासिक फैसला मंजूर है। 
रजनी के भाई ने कहा, "एक अनुरोध है इस फैसले में कबीर की राय बहुत आवश्यक है, उसकी मंशा जान लेनी चाहिए। उसकी इच्छा के विरुद्ध ये रिश्ता नहीं हो सकता।" 

कबीर को बुलाकर उसकी राय पूछी गई।
कबीर बोला, "मुझे पिताजी का लिया गया फैसला मंजूर है।"

कबीर की हाँ होते ही रजनी को तैयार किया गया। 
कबीर के सिर पर सेहरा सजा दिया। 

उसी गमगीन माहौल में विवाह वेदी तैयार की गई।
रजनी और कबीर के फेरे होने लगे। 
रजनी को रोते-रोते वही प्रक्रिया फिर से दोहरानी पड़ी। 
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह खुश हो या दुख मनाए।

खुशी-गम के मिश्रित भावों से वहाँ मौजूद सबकी आँखें नम थी।

रजनी ने जिसे पहली बार देखकर अपना हमसफ़र समझा आज उसी की दुल्हन बनकर सुख-दुख के साथ नया जीवन बसाने चल दी।
🌹🌹🙏🙏🌹🌹

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 






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11 Comments

Babita patel

24-Aug-2023 06:12 AM

amazing post

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Alka jain

15-Jul-2023 02:49 PM

Nice one

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HARSHADA GOSAVI

14-Jul-2023 01:23 PM

nice

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